Ramadan 2024: ज़कात और जकात अल-फितर में क्या फर्क है!

Ramadan 2024: रोज़ा रखने, नमाज़ अदा करने और कुरान पढ़ने के अलावा, Ramadan के दौरान ज़कात और ज़कात अल-फितर का शराकत  की अहमियत रखता है। ज़कात इस्लाम के बुनियादी सुतून में से एक है। हर एक मुसलमान को Ramadan के महीने के दौरान ईद की नमाज़ से पहले फ़ितरा (जिसे ज़कात अल-फ़ितर भी कहा जाता है) और ज़कात देना चाहिए। मुस्लिम आलिम मौलाना खुर्शीद मदनी, फुलवारी शरीफ ने बताया कि इस्लाम में, कोई भी व्यक्ति जिसके पास अपनी आवश्यकताओं को पूरा करने के बाद अतिरिक्त धन या संपत्ति है, वह ज़कात देने के लिए पाबंद है।

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Ramadan में : फ़ितरा और ज़कात

मौलाना खुर्शीद मदनी, फुलवारी शरीफ ने तौसिय के साथ बताया कि जब कोई अमीर मुस्लिम ज़कात देता है, तो यह आम तौर पर आवामी ऐलान के बिना, मोहतात तरीके से किया जाता है। उन्होंने कहा कि ज़कात के ज़कात वसूल करनेवाला, जो इक्तसादी कमी से महरूम हैं, उन्हें आवामी ख़ैरात को तौहीन के रूप में नहीं लेना चाहिए।

Ramadan में, ज़कात दो शक्लों में होता है: फ़ितरा और ज़कात।इस्लामी तालीमात के अनुसार, इक्तसादी रूप से capable प्रत्येक मुसलमान को रमज़ान के मोक़द्दस महीने के दौरान ज़कात लाज़िम देनी चाहिए। ज़कात में किसी की Anual Income से जमा शुदा बचत का 2.5 प्रतिशत जरूरतमंद लोगों को देना शामिल है, जिन्हें गरीब या जरूरतमंद कहा जाता है।

उदाहरण के लिए, यदि किसी मुसलमान के पास सभी खर्चों के बाद 100 रुपये बचे हैं, तो उसमें से 2.5 रुपये किसी जरूरतमंद को देना उस पर फ़र्ज़ है। जकात की रकम 2.5 फीसदी तय है, जबकि जकात-अल-फितर के लिए कोई मोक़र्रर हद नहीं है। अपनी सलाहियत के अनुसार कोई भी रक़म दे सकता है।

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मौलाना खुर्शीद मदनी, फुलवारी शरीफ ने इस बात पर रौशनी डाला कि अल्लाह ने ईद को सभी के लिए एक जश्न के रूप में नामज़द किया है, चाहे उनकी सलाहियत और दौलत कुछ भी हो। यह यक़ीनी बनाने के लिए कि ईद के जश्न का आनंद गरीबों में कम न हो, हर एक आमिर और हैसियत रखनेवाला मुसलमान को ज़कात और फ़ितरा दोनों देना चाहिए।

ज़कात सालों  भर जरूरतमंदों को दी जा सकती है, जबकि ज़कात अल-फितर खास करके ईद-उल-फितर, रमज़ान के आखिर में ईद के जश्न के लिए दिया जाता  है।

खुलासा ये है की , ज़कात और ज़कात अल-फितर अपने Application and date में अलग हैं, फिर भी उनके ज़कात देने के Target समान हैं। मुसलमानों को दोनों तरह के जकात देने की जरूरत होती है; ऐसा करके, वे पसमांदा मुसलमानो का हिमायत करते हैं और social welfare को आगे बढ़ाते हैं।

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